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सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का हलफनामा कहा- हिंदू भी माइनॉरिटी, राज्य दे सकते हैं दर्जा

सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का हलफनामा कहा- हिंदू भी माइनॉरिटी, राज्य दे सकते हैं दर्जा
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देश के कई राज्यो में हिंदुओ की कम जनसंख्या को लेकर केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। जिसमें केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 'जिन राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या कम है, वहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है।

दरअसल अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है। जिसके जवाब में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दायर किया है।

अश्वनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में धारा 2(एफ) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह केंद्र को अकूल शक्ति देती है जो ''साफ तौर पर मनमाना, अतार्किक और आहत करने वाला है।'' याचिकाकर्ता ने देश के विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय करने के निर्देश देने की मांग की है। उनकी यह दलील है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में हिन्दू भी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।

मोदी सरकार ने कुछ राज्यों में हिंदुओं को माइनॉरिटी का दर्जा देने की माँग करने वाली याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि राज्य अपने हिसाब से हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। केंद्र ने कहा कि जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध पारसी और जैन को माइनॉरिटी का तमगा मिला है वैसे ही राज्य भाषायी या फिर संख्या के आधार पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखने के लिए स्वतंत्र हैं।

इसी याचिका का जवाब देते हुए केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जिन धर्म के अनुयायियों की बात की है वह उक्त राज्यों में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और राज्य उन्हें अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखने पर विचार कर सकता है। याचिका में एक जगह जहाँ चुनौती दी गई थी कि धारा 2 (एफ) केंद्र को अकूत ताकत देती है उस दावे को केंद्र ने अस्वीकार किया है। अब इस मामले पर आज सुनवाई होगी।

उल्लेखनीय है कि हिंदुओं के लिए याचिका डालने वाले अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी थी। उनकी याचिका में उल्लेख है कि ये धारा केंद्र को अकूत शक्ति प्रदान करती है जो स्पष्ट तौर पर मनमाना और अतार्किक है।

केंद्र सरकार ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2020 में दायर याचिका पर जवाब देते हुए महाराष्ट्र और कर्नाटक का उदाहरण दिया। सरकार ने ध्यान दिलाया कि जैसे कि महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों के लिए धार्मिक और कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी कोंकणी और गुजराती को भाषायी आधार पर अल्पसंख्यक घोषित किया है, अन्य राज्यों को भी ये करने की पूरी छूट है।

बता दें कि वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि जम्मू कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मणिपुर, और पंजाब में हिंदू, यहूदी और बहाई अल्पसंख्यक हैं। फिर भी राज्यों की बहुसंख्यक आबादी को इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के फायदे दिए जाते हैं और जो सच में अल्पसंख्यक हैं उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। उनके शैक्षणिक संस्थान स्थापित नहीं हो पाते।

Shipra Saini

Shipra Saini

News Anchor


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