जाते-जाते सिद्दू और कांग्रेस की सारी पोल खोल गए कैप्टन अमरिंदर सिह, कहीं का न छोड़ा।
जाते-जाते सिद्दू और कांग्रेस की सारी पोल खोल गए कैप्टन अमरिंदर सिह, कहीं का न छोड़ा।

पंजाब कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्दू की एंट्री ने मानो पूरी पंजाब कांग्रेस को तबाह कर दिया हो। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से स्तीफा दे दिया है और साथ ही उनका ये भी कहना है कि अगर कांग्रेस नवजात सिंह सिंद्दू को पंजाब के नए मुख्यमंत्री के तौर पर चुनती है तो मैं उसका विरोध करूंगा, क्योंकि कैप्टन अमरिंदर का मानना है कि सिद्दू के पाकिस्तान से अच्छे कनेक्शन हिंदुस्तान की सुरक्षा में बाधा बन सकते हैं। कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद एक इंटर्वयू में कहा कि, वह नवजोत सिद्दू को काफी सालों से जानते हैं और उन्हें पता है कि सिद्दू पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और बाजवा के बेहत नजदीक हैं वह काफी अच्छे दोस्त हैं तो इसलिए अगर सिद्दू पंजाब के मुख्यमंत्री बनते हैं तो पंजाब में खतरा बढ़ सकता है क्योंकि नवजोत सिंह सिद्दू के पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही पंजाब में पाकिस्थान द्धारा कई द्रोन भेजे जा चुके हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू देश की सुरक्षा के लिए खतरा है । @capt_amarinder pic.twitter.com/CF1xBhN0f1
— R P Singh: National Spokesperson BJP (@rpsinghkhalsa) September 18, 2021
आपको बता दें कि पंजाब में जल्द ही नए सीएम की घोषणा हो सकती है। सोनीया गांधी ने और राहुल गांधी ने बीती रात ही अंबीका सोनी से बात की थी, उम्मीदें ये भी लगाई जा रही थी कि अंबीका सोनी ही पंजाब की नई सीएमो सकती हैं लेकिन सोनीया गांधी के इतना कहने के बावजूद भी अंबीका सोनी ने पंजाब की कमान अपने हाथ में लेने से इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि पंजाब का सीएम किसी सिख को ही होना चाहिए। इसलिए उन्होंने सीएम पद अपनाने से मना कर दिया। वहीं अब पंजाब कांग्रेस के सभी विधायकों की बैठक हो रही हैं। जल्द ही नए सीएम के नाम की घोषणा की जा सकती है। भले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते थे लेकिन उन्होंने हमेशा ही सबसे ऊपर देश और देश की सुरक्षा को रखा है। यही कारण है कि आज उन्हें मजबूरन अपने पद से इस्तीफा देना पड़।
वो(नवजोत सिंह सिद्धू) मेरा मंत्री था और उसे निकालना पड़ा। 7 महीने तक अपनी फाइलें क्लियर नहीं की। क्या इस तरह का व्यक्ति जो एक विभाग नहीं संभाल सकता वो एक राज्य संभाल सकता है? : इस्तीफा देने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह pic.twitter.com/lWshiYVa4A
— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 18, 2021
कैप्टन अमरिंदर सिंह कभी सोनिया गांधी के कहने पर ही कांग्रेस में लौटे थे। कांग्रेस को पंजाब में मजबूत करने में कैप्टन अमरिंदर सिंह का अहम रोल रहा है। पार्टी 2002 और 2017 में कैप्टन का चेहरा आगे कर ही सत्ता तक पहुंची। पंजाब कांग्रेस की मौजूदा लीडरशिप पर नजर डाली जाए तो कैप्टन इकलौते ऐसे लीडर हैं, जिन्हें खुद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सियासत में लेकर आए। कैप्टन एक बार पहले कांग्रेस छोड़ चुके हैं, मगर उसके 14 साल बाद वह सोनिया गांधी के आग्रह पर दोबारा पार्टी में लौटे और वो भी कांग्रेस को मजबूत करने के नाम पर।सिद्धू खेमे के विरोध और CM पद छोड़ने के दबाव के शनिवार सुबह कैप्टन ने पूरे प्रकरण पर जब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात की तो उन्होंने इस बार कहा कि सॉरी अमरिंदर। इसके कुछ ही घंटे बाद कैप्टन ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। सेना की सिख रेजिमेंट में 1963 में बतौर कैप्टन जॉइन करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग के बाद सेना छोड़ दी। कैप्टन और राजीव गांधी मशहूर सनावर स्कूल में साथ पढ़े थे और उसी समय से दोस्त थे।
मैं जानता हूं पाकिस्तान के साथ कैसे इसका(नवजोत सिंह सिद्धू) संबंध है। पाकिस्तान का प्रधानमंत्री इसका दोस्त है, जनरल बाजवा के साथ इसकी दोस्ती है: इस्तीफा देने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह https://t.co/HBQN9Y2nPq
— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 18, 2021
राजीव गांधी और सोनिया गांधी की लव मैरिज से इंदिरा गांधी नाराज थीं और उस समय पटियाला राजघराने के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ही राजीव और सोनिया को अपने महल में ठहराया था। 1980 में राजीव गांधी के कहने पर ही कैप्टन ने पहली बार चुनाव लड़ा और लोकसभा सांसद बने। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1984 में गोल्डन टैंपल पर हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार से आहत होकर कैप्टन ने कांग्रेस छोड़ दी थी। कांग्रेस छोड़ने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह शिरोमणि अकाली दल में चले गए और बठिंडा की तलवंडी साबो सीट से दो बार विधायक चुने गए। तत्कालीन अकाली दल की सरकार में कैप्टन मंत्री बने और एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट और पंचायतीराज मंत्रालय संभाला।
1992 में कैप्टन ने शिरोमणि अकाली दल से डकाला विधानसभा सीट मांगी, मगर पार्टी ने वहां से गुरचरण सिंह टोहड़ा के जमाई हरमेल सिंह टोहड़ा को टिकट दे दिया। इसके बाद कैप्टन ने तलवंडी साबो सीट मांगी जहां से वह 2 बार विधायक बन चुके थे, मगर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के दबाव में उन्हें वो सीट भी नहीं दी गई। दरअसल बादल नहीं चाहते थे कि कैप्टन मजबूत हों। अकाली दल से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर कैप्टन ने शिरोमणि अकाली दल छोड़कर 1992 में अकाली दल पंथक नाम से नई पार्टी बना ली। 1998 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन की पार्टी कुछ खास नहीं कर सकी और खुद कैप्टन को उनकी सीट से महज 856 वोट मिले। 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली, जिनसे कैप्टन परिवार के मधुर संबंध थे। सोनिया के आग्रह पर कैप्टन ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और 1999 में कांग्रेस हाईकमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब में कांग्रेस का प्रधान बना दिया।