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त्यागी भूमिहारों का स्वाभिमानी स्वर्णिम इतिहास जानेंगे तो चौंक जाएंगें

त्यागी भूमिहारों का स्वाभिमानी स्वर्णिम इतिहास जानेंगे तो चौंक जाएंगें
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कौन होतें हैं त्यागी भूमिहार समाज के लोग क्या है इतिहास जानेंगे तो त्यागी समाज को नमन किए बिना नहीं रह पाएंगे I

नोएडा के श्रीकांत त्यागी प्रकरण से मीडिया की सुर्खियां बना त्यागी समाज कौन है ?

पूरे देश में कहां कहां इनका असर है इस विषय पर देश के जाने माने राजनैतिक विश्लेषक व त्यागी ब्राह्मण वैलफेयर ऐसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन त्यागी ने त्यागी व भूमिहार समाज के विषय में जानकारी दी I

पवन त्यागी ने बताया कि भूमिहारों के इतिहास के आइने में देखेंगे तो पाएंगे कि त्यागी समाज भी इसी जाति से जुड़ा हुआ है। हालांकि, भूमिहार जाति व्यवस्था में नाम के आगे लगाए जाने वाले सरनेम पर ध्यान देंगे तो आपको कई बार कन्फ्यूजन जैसी स्थिति होगी। भूमिहार जाति के शब्दों को अगर देखें तो यह दो शब्दों से जुड़कर बना है- भूमि और हार। यानी भूमि का हार रखने वाले। यह जाति मूल रूप से खेती से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को पराजित कर जो जमीन हासिल की थी, उसे उन्होंने अपने शिष्यों (ब्राह्मणों )को कृषि के लिए दे दी। इन ब्राह्मणों ने पूजा-पाठ ,दान ग्रहण करना छोड़ कर खेती शुरू कर दी।

भगवान परशुराम के अनुयायियों ने युद्ध कला में भी अपने आपको निपुण किया ,उत्तर प्रदेश के ऐसे ब्राह्मणों ने दान लेने का त्याग कर ,परिश्रम से खेती करके कमाने का व्रत लिया इसलिए अपने नाम के आगे त्यागी लगाया I

कुछ ब्राह्मण त्यागियों को त्यागा हुआ बताकर उनका अपमान करते हैं उन्हें मैं बताना चाहता हूं कि जिसको त्यागा जाता है उसे त्याजत कहते हैं और जो खुद किसी भी प्रकार का त्याग करता है उसे त्यागी कहते हैं I

इसी जाति वर्ग से त्यागी समाज की उत्पत्ति हुई। बिहार में भगवान परशुराम जी के शिष्यों को भूमिहार बोला गया भूमिहार ब्राह्मण सवर्ण किसान के रूप में पहचाना जाता है जिसमें राय ,सिन्हा ,सिंह सरनेम लगाने का चलन चला I

पंजाब में बाली ,महता महाराष्ट्र में सावरकर पश्चिम बंगाल में भादूडी भी भगवान परशुराम जी के वंशज ही हैं ,यानि वो भी त्यागी ही हैं I

त्यागी समाज के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कुछ हिस्सों में त्यागी समाज के लोग पाए जाते हैं। बनारस का राजघराना विभूति साम्राज्य यानी काशी नरेश भी त्यागी समाज से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा ईरान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान के हिस्से में भी प्राचीन काल में त्यागी समाज के मोहयाल शाखा के राजाओं का इतिहास रहा है। अफगानिस्तान के शाही मोहयाल साम्राज्य ने सबसे पहले अरबों को युद्ध में धूल चटाई थी। इसके बाद 300 सालों तक अरब अखंड भारत की तरफ नजर भी नहीं उठा पाए थे।

महाभारत काल से भी जुड़ा है इतिहास

त्यागी समाज का इतिहास महाभारत काल से ही एक जुझारू समाज के रूप में सामने आता है। महाभारत काल में यह समाज मेहनत करने वाला और शक्तिशाली माना जाता रहा है। महाभारत में पांडवों को शरण देने वाला कांपिल्य नगर भी त्यागियों का गांव था। कांपिल्य नगर महाभारत के समय में पंचाल जनपद की राजधानी थी। इसके राजा द्रुपद थे। प्राचीन काल का पंचाल जनपद गंगा नदी के दोनों तरफ फैला हुआ था। यजुर्वेद के तैत्तरीय संहिता में इस नगरी का जिक्र कंपिला के रूप में मिलता है। द्रुपद से आचार्य द्रोण ने युद्ध में यह साम्राज्य छीन लिया था। उसी समय से यह इलाका त्यागियों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र के रूप में रहा है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में त्यागी के समाज के लोगों की बड़ी जमींदारी रही है। जमींदारों ने अपने रियासत बनाए थे। वहां उन्होंने अन्य तमाम जातियों को संरक्षण और संवर्द्धन दिया। इस इलाके में बावनी गांवों का अपना इतिहास रहा है। कहा जाता है कि त्यागी समाज के लोग 52 OOO बीघे की रियासत पर अधिकार रखते थे।

इन 52 0OO बीघे के गांवों को बावनी गांव के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा तालहैटा, निवाड़ी, असौड़ा रियासत, रतनगढ़, हसनपुर दरबार दिल्ली, बेतिया रियासत, राजा क ताजपुर, बनारस राजपाठ, टेकारी रियासत जैसे प्रमुख रियासत रहे हैं। इससे साबित होता है कि त्यागी समाज भी भूमिहार जाति वर्ग से जुड़ा हुआ है।

त्यागी सरनेम की बात की जाए तो मुसलमान और एससी जातियों में भी यह वर्ग पाया जाता है। त्यागी से कन्वर्टेड मुसलमान पश्चिमी यूपी के कई इलाकों में त्यागी लिखते हैं। वहीं, पूर्वांचल के कुछ इलाकों में एससी का एक तबका अपना सरनेम त्यागी लगाता है। हालांकि, इनका पश्चिमी यूपी के त्यागी समाज से कोई कनेक्शन नहीं है। पिछले दिनों वसीम रिजवी के धर्म परिवर्तन के बाद खुद को त्यागी बताए जाने का मामला सामने आया है। उन्होंने हिंदू धर्म स्वीकार करने के बाद जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी नाम लिखना शुरू कर दिया है।

सरनेम का अपना अलग ही इतिहास

भूमिहारों में सरनेम का अपना अलग ही इतिहास है। हालांकि, त्यागी समाज के लोग अपने नाम के आगे त्यागी ही लगाते हैं। वैसे भूमिहार जाति के प्रभुत्व की बात करें तो बिहार में इनकी बहुलता सबसे अधिक है। यहां ये हर मंडल में अलग-अलग टाइटल के साथ मिल जाएंगे। मगध प्रमंडल में भूमिहार वर्ग अपने नाम के साथ सिंह और शर्मा सरनेम मुख्य रूप से लगाते हैं। वहीं, मुंगेर प्रमंडल से बेगूसराय तक नाम के आगे सिंह सरनेम लगाया जाता है। समस्तीपुर के इलाके में अमूमन यह वर्ग सिंह, ठाकुर, राय और चौधरी टाइटल लगाता है। दरभंगा में मिश्रा, छपरा में सिंह एवं कुंवर, शाहाबाद मंडल में तिवारी, कुंवर एवं मिश्रा और तिरहुत एवं मुजफ्फरपुर में ठाकुर, सिंह, सिन्हा, शुक्ला और शाही जैसे सरनेम यह वर्ग लगाता है। इसके अलावा भागलपुर-पूर्णियां इलाके में सिंह, शर्मा, तिवारी, मिश्रा आदि सरनेम लगाया जाता है।

त्यागी ब्राह्मण वैलफेयर ऐसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राजनैतिक विश्लेषक पवन त्यागी ने बताया कि यूपी की बात करें तो यहां भी त्यागियों के कई सरनेम होते हैं ।

पूर्वांचल के जिलों में भूमिहार जाति के लोग राय, सिन्हा, शर्मा, शाही, पांडेय, प्रधान, उपाध्याय जैसे टाइटल लगाते हैं। यहां यह जाति प्रमुख रूप से गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी, संत कबीर नगर, मऊ, बलिया, देवरिया, कुशीनगर, प्रयागराज, आजमगढ़ आदि जिलों में पाई जाती है।

पश्चिमी यूपी में मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, नोएडा, अमरोहा, बिजनौर आदि इलाकों में यह जाति पाई जाती है। यहां मुख्य रूप से त्यागी सरनेम लगाते हैं।

त्यागी समाज के लोग जहां एक ओर पैसे से काफी सम्पन्न होते हैं वहीं राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय भी हैं त्यागी भूमिहार समाज के लोग l

राजनीतिक रूप से भूमिहार वर्ग काफी सक्रिय रहा है। बिहार की राजनीति में इस वर्ग की काफी दखल थी। वर्ष 1911 की जातीय जनगणना के आधार पर बिहार में भूमिहारों की आबादी कुल आबादी का करीब 5 फीसदी थी। हालांकि, बाद के समय में इस वर्ग की आबादी लगभग उतनी ही रही। अन्य जातियों की आबादी बढ़ने के कारण उनकी जनसंख्या का अंतर होता गया। एक अनुमान के मुताबिक आजकल बिहार की आबादी में करीब 5 से 7 फीसदी भूमिहारों की आबादी है। पूरे देश की आबादी में यह वर्ग 1 फीसदी से भी कम है। इसके बाद भी जमीन पर दबदबे के कारण यह वर्ग अपने साथ कई अन्य जातियों को साथ लेकर चलता है और वह राजनीतिक असर दिखाता रहता है।

भूमिहार ब्राह्मणों के कुछ महत्वपूर्ण गोत्र:

1. कश्यप- जैथरिया, किनवर, बरुआर, दंस्वर कुधुनिया, नोनहुलिया, तातिहा, कोल्हा, करेमुआ, भाडे चौधरी, त्रिफला पांडे, परहपे, सहस्नाम, दीक्षित, जुझौटिया, बबंदिहा, मौर, दधीरे, मरे, सिरीयर, धौरी और भूपाली आदि।

2. पराशर- एक्सारिया, सहदौलिया, सुरगने और हस्तगामे

3. वसिता- कस्तुआर, दरवालिया और मरजानी मिश्रा

4. संडिलया- दिघवैत, कुसुम तिवारी, कोरंच, नैनजोरा, रमियापांडे, चिक्सौरिया, करमाहे, ब्रह्मपुरिया, सिहोगिया आदि

5 . गर्ग- शुक्ल, बासमैत, नागवा शुकला और गर्ग

6 . भारद्वाज- दुमतीकर, जठरवार, हेरापुरीपांडे, बेलौंचे, अंबरीया, चकवार, सोनपखरेया, मचैयापांडे, मनाछेया, सोनेवर, सिएनी

7 . अगस्त- अगस्त

8 .कौसा- कौसा

9. उपमन्यु- उपमन्यु

10 . कण्व- कणव या काणव

11 .मौदगल्या- मौदगल्या

12. लौगाछी- लौगाची

13. तांड्या- तांड्या

14 . कपिल- कपिल

15 .मौनस- मौनास

16 .कौंडिन्य- आथर्व (अथर्ववेदी) बिजुलपुरिया

17. आत्रेय- मैरेयपांडे, पुले, एनरवार

18. विष्णुवृद्ध- कुथवैत

19 .कात्यायन- वद्रकामिश्र, लमगोदेयतेवारी, श्रीकांतपुर के पांडे

2O. कौशिक- कुसौंझीया, टेकर के पाण्डेय, नेकतीवार

21 .संकरी- सकरवार, मलैयापांडे, फतुहवादिमिश

22. सवर्ण्य- पंचोभे, सोबरनेया, टेकरापांडे, आरापे, बेमुआर

23 . वत्स- दोनवार, गणमिश्रा, सोनभद्रेय, बगुचेया, जे अलेवर, संसारिया, हाथौरेया, गंगटिकाई

24 .गौतम- पिपरामिश्रा, गोतमेय, दत्त्यायन, वात्स्यायन, करमैसुरौर, बदरमिया

25 .भार्गव- भृगु, आश्रेय्या और कोठा भारद्वाज और भारद्वाज (भृगु, भार्गव और कश्यप एक ही हैं, क्योंकि उनके मूल ऋषि में समानता है)

अब जबकि देश में जाति के आधार पर राजनिति में स्थान ,मंत्रालय ,पद ,पार्टी प्रत्याशी के टिकटों का बंटवारा होता है तब यूपी और बिहार में जहां त्यागीयों और भुमिहारों का दबदबा है तो क्यों न अपनी पहचान अलग बनाई जाए ? हालाकि अभी तक अधिकांश यागी भूमिहार वर्ग भाजपा के पक्ष में वोट करता आया है किंतु पवन त्यागी के अनुसार इस वर्ग को उतना स्थान भाजपा ने त्यागी समाज को नहीं दिया है ,इसी लिए अब कुछ लोग अलग पार्टी बनाने की चर्चा कर रहें हैं l

भाजपा और देश के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है ,ऐसे में भाजपा त्यागी व भूमिहार समाज को कितना संतुष्ट कर पाएगी यह भविष्य बताएगा ?




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