SC की रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर भड़के टिकैत, सुप्रीम कोर्ट को बताया केंद्र सरकार की कठपुतली
कृषि कानून को लेकर देशभर में विपक्ष ने सियासी रोटियां सेंकी, लगातार विपक्ष के द्वारा किसानो को भड़काया गया जिसके बाद 1.50 सालों तक किसानो ने आंदोलन किया। दिल्ली से सटे बॉर्डर पर किसान बैठे रहे और केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे। किसान आंदोलन के अगुआ भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत थे जिन्हे विपक्ष का पूरा साथ मिल रहा रहा था और राकेश टिकैत बार बार किसानों को उकसा रहे थे। बाद में इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने कृषि कानून बिल वापिस ले लिया। जिसे जहाँ किसान अपनी जीत और केंद्र सरकार की हार बता रहे थे तो वहीं अब इसमें चौकाने वाला मामला सामने आया है , दरअसल अब जो खबर सामने आयी है वो राकेश टिकैत के लिए एक बड़ा झटका है।
मिडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के एक पैनल ने ये दवा किया है की 86% किसान संगठन सरकार के कृषि कानून से खुश थे और इसके फेवर में है। अब एक बार फिर तीन कृषि कानून को लेकर राजनीति तेज़ हो गयी है। वहीं कुछ संगठनों को ये डर सताने लगा है कि ये कृषि कानून वापस लाने का सरकार माहौल तो नहीं बना रही तो वहीं इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद राकेश टिकैत ने सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार की कठपुतली बताया और कृषि कानून के खिलाफ दोबारा एक बड़े आंदोलन की धमकी भी दे दी है।
राकेश टिकैत ने मंगलवार को ट्वीट किया की 'तीन कृषि कानूनों के समर्थन में घनवट ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट सार्वजनिक कर साबित कर दिया कि वे केंद्र सरकार की ही कठपुतली थे। इसकी आड़ में इन बिलों को फिर से लाने की केंद्र की मंशा है तो देश में और बड़ा किसान आंदोलन खड़े होते देर नहीं लगेगी।'
SC की रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर भड़के टिकैत, सुप्रीम कोर्ट को बताया केंद्र सरकार की कठपुतलीSC की रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर भड़के टिकैत, सुप्रीम कोर्ट को बताया केंद्र सरकार की कठपुतलीSC की रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर भड़के टिकैत, सुप्रीम कोर्ट को बताया केंद्र सरकार की कठपुतली
बता दे, केंद्र सरकार की तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पैनल ने एक बड़ा दावा किया है। पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि 86% किसान संगठन सरकार के कृषि कानून से खुश थे। ये किसान संगठन करीब 3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 2015-16 कृषि जनगणना के मुताबिक देश में कुल 14.5 करोड़ किसान हैं।
इसके बावजूद इन कानूनों के विरोध में कुछ किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल गुरु नानक देव की जयंती 19 नवंबर को इन कानूनों को रद्द करने का ऐलान किया था।
आपको बता दे, सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जनवरी 2021 में तीनों कृषि कानूनों की जमीनी सच्चाई जानने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल धनवत और प्रमोद कुमार जोशी को शामिल किया था। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक कमेटी ने मार्च 2021 में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। रिपोर्ट में सरकार को कृषि कानून से जुड़े सुझाव भी दिए गए हैं .
SC की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है फसल खरीदी और अन्य विवाद सुलझाने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है। कमेटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए किसान अदालत जैसा निकाय बनाया जा सकता है। कमेटी ने यह भी कहा है कि कृषि के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए एक बॉडी बनाने की जरूरत है। कमेटी की रिपोर्ट जल्द ही सार्वजनिक होने का अनुमान है।वहीं दूसरी तरफ राकेश टिकैत ये दावा करते आ रहे है की ये कृषि कानून किसान विरोधी है लेकिन रिपोर्ट के सामने आते ही टिकैत के दावों के पोल भी खुल गए है और टिकैत पूरी तरीके से एक्सपोज़ हो चुके है। हालांकि यूपी चुनाव में भी टिकैत अपने समर्थको से बीजेपी को सजा देने की बात करते रहे लेकिन किसानो ने टिकैत के गढ़ में भी भगवा लहरा दिया। प्रधानमंत्री के कृषि कानून रद्द करने की घोषणा के बाद दिसंबर 2021 में किसान संगठनों और सरकार के बीच अंतिम दौर की बातचीत में कई मुद्दों पर सहमति बनी थी। इनमें MSP तय करने पर कमेटी बनाने, मृत किसानों को मुआवजा देने और किसानों पर आंदोलन के दौरान लगे मुकदमे हटाने पर सहमति बनी थी।
जानिए MSP क्या होती है?
MSP, यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य। केंद्र सरकार फसलों की एक न्यूनतम कीमत तय करती है, इसे ही MSP कहा जाता है। अगर बाजार में फसल की कीमत कम भी हो जाती है, तो भी सरकार किसान को MSP के हिसाब से ही फसल का भुगतान करेगी। इससे किसानों को अपनी फसल की तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल के दाम कितने चल रहे हैं। ये एक तरह फसल की कीमत की गारंटी होती है।